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डॉ शशिशेखर नैथानी (१९२४-१९९८)
डॉ शशिशेखर नैथानी ने अपनी जीवन यात्रा पौड़ी गढ़वाल के चैदार पाली गाँव से प्रारम्भ की। स्कूली शिक्षा पहले गाँव में और फिर लैंसडौन में पूरी हुई। बी ए देहरादून के डी ए वी कॉलेज से किया और एम ए इलाहाबाद विश्वविद्यालय से।
सन् १९४९-५० में डॉ नैथानी ने मुंबई के संत ज़ेवियर कॉलेज में हिंदी-विभाग की स्थापना की,आगे चलकर मुंबई विश्वविद्यालय में हिन्दी-विभाग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस तरह मुंबई के पटल पर हिंदी भाषा और साहित्य का एक नया इतिहास रचा गया।
डॉ नैथानी कॉलेज में, मुंबई विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे लेकिन आपने स्कूली छात्रों के लिए “भारती” – नवीं,दसवीं और ग्यारहवीं की पाठ्यपुस्तकों का संकलन किया, जिसे सन् १९५६ से १९७१ तक पूरा गुजरात और महाराष्ट्र स्कूलों में पढ़ रहा था।
विद्यार्थियों की भाषा की नींव मज़बूत हो, अच्छे लेखक-कवियों को वे पढ़ें और जीवन जीने के कुछ तौर- तरीके सीख सकें, आदर्शों को जान सकें, यही आपका ध्येय था। भारत १९४७ में आज़ाद हुआ। आज़ादी के बाद अनेक सरकारी और अर्धसरकारी संस्थानों की स्थापना हुई। डॉ नैथानी ने ओ एन जी सी, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, राष्ट्रीय बैंक, टेलीफ़ोन निगम जैसी सभी संस्थानों में हिंदी-विभाग और हिंदी अधिकारियों को हिंदी सिखाने के लिए अनेक-अनेक कार्यशालाओं का आयोजन किया। अनेक हिंदी नाटकों का मंचन कराया ताकि लोग बोलचाल की भाषा जानें, समझें और इस्तेमाल करें। अनेक कवि सम्मेलनों का आयोजन कर लोगों में हिन्दी के प्रति प्रेम जगाने का प्रयत्न करते रहे।
हिन्दी जगत में डॉ नैथानी का सबसे बड़ा योगदान है- भाषा की सरलता और शुद्धता। डॉ नैथानी का मानना था कि अपनी बात लोगों तक पहुँचाने का माध्यम है भाषा और भाषा जितनी सहज-सरल होगी उतनी ही सुन्दर लगेगी।
भाषा सही लिखने और उसके सही उच्चारण पर आपका विशेष ज़ोर रहता था। डॉ नैथानी ने बड़े प्रेम और सौहार्द के साथ आजीवन हिंदी भाषा की इसी शुद्धता और सरलता की सेवा की।
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Dr. Shashishekhar Naithani (1924-1998)
Dr. Shashishekhar Naithani’s journey started from Chaidaar Pali of Pauri Garhwal. After completing primary education in his village and higher secondary from Lancedowne, he graduated from DAV College Dehradun and then completed his post-graduation from Allahabad University.
In 1949-50 Dr. Naithani established Hindi department at St. Xavier’s College Bombay and then at Bombay University. And thus began a new era of Hindi language and literature on the soil of Bombay (now Mumbai).
Dr. Naithani was a professor in college but compiled school text books ‘Bharati’ for 9 th , 10 th and 11 th standards which were being studied in all of Gujarat and Maharashtra from 1956 to 1971. Strengthening the students’ foundation by introducing the works of good writers and poets, inculcating good values and morals to lead a better life – these were his objectives.
Post independence, many government and semi government organisations such as ONGC, Bharat Petroleum, Hindustan Petroleum, nationalised banks, telephone nigam were established. Dr. Naithani conducted several workshops for training Hindi officers of Hindi departments at these organisations. He staged several Hindi plays so that general public understands, learns and comfortably uses conversational Hindi.
Dr. Naithani’s biggest contribution has been emphasising simplicity and purity of language. After all, language is a means of communicating one’s mind to others and the real beauty of language is in its simplicity. He emphasised the importance of purity of written as well as spoken language. With much affection and harmony, Dr. Naithani dedicated his entire life serving Hindi in its simplest and purest form.
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